इस कविता क माध्यम से हमने यह बताने का प्रयास किया है कि श्री कृष्ण का श्री राधा जी से हुआ वार्तालाप कैसा रहा होगा जब वे दोनों अपनी मृत्यु पर्यंत वैकुंठ लोक में मिले होंगे  |

इस एकांतरिक वार्ता का आरंभ श्रीकृष्ण के कथन से होता है |

 

कविता :

कहो राधा जो कहत रहीं तुम, वार्ता में जो बुलाया
महाराज उद्धव का कथन यही की मेरी याद ने तुमको रुलाया ।

विरह की आग में दिन रैन रोये है तुम्हरी राधा,
कान्हा का प्रेम इस अभागिन को मिले हमेशा आधा |

मेरा प्रेम न हो सका, प्रिये, तुम्हारे लिए अधूरा,
आत्मा से जुड़े हम दो, सदा तुम्हारा ही रहा पूरा ।

कैसे मैं भरोसा करूं कि इस प्रेम पर अधिकार बस मेरा है,
जब मोरे कान्हा को हर जगह गोपियों ने घेरा है।

वो गोपियां जिनके जीवन में मेरी बांसुरी बिन अंधेरा है,
उस बांसुरी की हर सुर-ताल-लय पर मोरी राधा का ही बसेरा है ।

मुरली मनोहर ! यूं बतियाँ बना कर मोहे ना तुम उलझाओ,
श्याम सिर्फ राधा का क्यों नहीं ये मुझको बतलाओ ।

जन्म सफल न होता, न तुम्हारा न मेरा, जो कान्हा सिर्फ राधा का हो जाता,
पाठ जो जगत को पढ़ाना था, उसका गठन न हो पाता ।

कान्हा और राधा की प्रेम गाथा, जग में अधूरी रह गयी,
जग के पालन के चलते ये राधा कान्हा की मात्र सहेली बनकर रह गयी।

हे राधा, इस जग में मात्र अधूरी गाथा ही गायी जाती है,
तभी हर मंदिर में कान्हा संग राधा ही पायी जाती है ।

फिर जीवनसंगिनी के रूप में क्यों ना मिला मोहे तब वो सम्मान,
मोइ मूर्ति इर्द गिर्द तुम्हरे लगाके दिया जाता है जो मुझे अब मान ।

विष्णु-लक्ष्मी सामान ही रह सके कृष्ण-रुक्मिणी संग,
मूर्ति इर्द-गिर्द वो सम्मान तुम्हारा, रंगीं जो तुम मेरे रंग ।

रंगकर तुम्हरे रंग में कान्हा ये राधा दीवानी हो चली,
गर इस जग पालन में तुम खो गए तो मुरझा जायेगी तुम्हरी ये राधा कली।

मेरी राधा न कभी मुरझाएगी, आँसू धरती झेल न पाए,
जिस दिशा वो नयन घुमाएगी, कान्हा को ही पाए ।

राधा के रोम रोम में कान्हा ही कान्हा समाया है,
अपने कन्हैया के नाम का दीया इस राधा ने रोज़ जलाया है।

जो दीया मेरी प्रिये ने जलाया है, वो लौ सदा रहेगी,
राधा कान्हा संग ही थी, कान्हा की ही रहेगी ।

 

Picture credits : Google

A special thanks to my friend Meehika Joshi who has worked on this poem with me. Just adding another dimension.